देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में किसान आंदोलन की गूंज उठ रही है। लेकिन, अगर राजनीति के लिहाज से देखें तो पंजाब में किसान मुद्दे से कहीं बढ़कर सियासी दलों की मजबूरी है। यही वजह है कि चाहे राज्य की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल की हो या दिल्ली के बाद सियासी भविष्य सुरक्षित रखने में जुटी आम आदमी पार्टी (AAP) या फिर सत्ता में बैठी कांग्रेस, सब किसान हितैषी बनने के लिए हर वो कदम उठा रहे हैं, जिससे अगले चुनाव में पंजाब के किसानों के साथ ही उनसे जुड़े आढ़तियों और मजदूर वर्ग के वोट बैंक को अपने पक्ष में किया जा सके।
यही वजह है कि पहले कैप्टन ने पंजाब में किसान आंदोलन को पूरा समर्थन दिया। फिर दिल्ली कूच में उनकी सरकार ने कोई रोक-टोक नहीं की और जब हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज और पानी की बौछारें छोड़ी गईं, तो कैप्टन ने आक्रामक रूख अपनाते हुए हरियाणा सरकार से सीधे सवाल कर किसानों में पैठ बनाने की कोशिश की।
किसानों की कर्ज माफी के बाद अब पंजाब सरकार किसानों पर दर्ज किए केस वापस लेने जा रही है। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए यह मुद्दा इसलिए भी अहम है, क्योंकि कांग्रेस की सत्ता में वापसी से लेकर उनकी व्यक्तिगत छवि तक के लिहाज से किसान निर्णायक साबित हो सकते हैं।
किसान ताकतवर क्योंकि इनके कंधों पर इकोनॉमी
पंजाब की इकोनॉमी एग्रीकल्चर पर आधारित है। खेती होती है तो उससे न केवल बाजार चलता है, बल्कि ज्यादातर इंडस्ट्रीज भी ट्रैक्टर से लेकर खेतीबाड़ी का सामान बनाती हैं। पंजाब में 75% लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हैं। प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोगों की बात करें तो इसमें किसान, उनके खेतों में काम करने वाले मजदूर, उनसे फसल खरीदने वाले आढ़ती और खाद-कीटनाशक के व्यापारी शामिल हैं।
खेती के जरिए यह सभी लोग एक-दूसरे से सीधे जुड़े हुए हैं। इनके साथ ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री भी जुड़ जाती है। आढ़तियों से फसल खरीदकर आगे सप्लाई करने वाले ट्रेडर्स और एजेंसियां भी खेती से ही जुड़ी हुई हैं। अगले फेज में शहर से लेकर गांव के दुकानदार भी किसानों से ही जुड़े हैं। फसल अच्छी होती है, तो फिर किसान खर्च भी करता है। इसके जरिए कई छोटे कारोबार भी चलते रहते हैं।
कैप्टन एक साथ कई निशाने साध रहे
कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली सरकार किसान आंदोलन के जरिए एक साथ कई निशाने साध रही है। पंजाब में किसान राजनीति में इसलिए अहम हैं, क्योंकि किसान का सिर्फ अपना वोट नहीं बल्कि उनके साथ जुड़े खेत मजदूर पर भी उनका प्रभाव होता है। बड़े किसान आढ़तियों व खेतीबाड़ी से सीधे जुड़े कारोबार व दुकानदारों को भी प्रभावित करते हैं। इन सबको कांग्रेस से जोड़ना यह एक बड़ी रणनीति है।
दूसरा, केंद्र सरकार के नए कृषि सुधार कानून के खिलाफ सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि आढ़ती वर्ग भी है। इनका जुड़ाव ज्यादातर भाजपा के साथ माना जाता है। यही वजह है कि किसान हित की आड़ में कैप्टन सरकार उन्हें भी साध रही है। तीसरा कैप्टन अमरिंदर की अपनी छवि भी है। सतलुज-यमुना लिंक नहर से हरियाणा को पंजाब के बराबर पानी देने के प्रस्ताव को विधानसभा में टर्मिनेट कराने के बाद कैप्टन की किसानों के बीच अच्छी छवि बनी है।
इसके बाद मंडी से फसल जल्द से जल्द बिक जाए, इस पर भी कैप्टन का निजी फोकस रहता है। ऐसे में राजनीति के इस मोड़ पर कैप्टन किसानों की नजर में अपनी अच्छी छवि छोड़ने की कोशिश में हैं। हालांकि अगर ग्रामीण क्षेत्र में बात करें, तो यह भी चर्चा है कि अकाली दल के साथ छोड़ने के बाद भाजपा अकेले पंजाब में आएगी तो वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। ऐसे में सिख वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने के लिए भी यह कोशिश समझी जा रही है।
कैप्टन की विरोधियों को सियासी पटखनी देने की कवायद
अकाली दल का कमबैक नहीं चाहते कैप्टन
अकाली दल ने 10 साल सरकार चलाई, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में वह नंबर 3 की पार्टी बन गई। पंजाब की जनता ने उन्हें विपक्ष का सबसे बड़ा दल बनने लायक भी नहीं छोड़ा और इसकी बड़ी वजह श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी रही, जिससे ग्रामीण वोट बैंक टूट गया। अकाली दल कमबैक के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है। इसीलिए केंद्र सरकार में मंत्री पद की कुर्बानी से लेकर एनडीए से गठबंधन तोड़ने और फिर पांच बार CM रहे प्रकाश सिंह बादल का पद्म विभूषण वापस किया गया। इन सबसे कहीं अकाली दल फिर किसानों व उनसे जुड़े वोट बैंक में घुसपैठ न कर सके, इसलिए कैप्टन लगातार नए दांव चल रहे हैं।
AAP के सोशल मीडिया सपोर्ट का तोड़
किसान आंदोलन के जरिए आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब में फिर से अपने पक्ष में वेव बनाने की कोशिश में है। जमीनी स्तर पर भले कम नजर आए, लेकिन सोशल मीडिया पर AAP आक्रामक रवैया अपनाए बैठी है। AAP के समर्थक किसान आंदोलन के पक्ष और PM मोदी के विरोध में लगातार मुहिम चलाए बैठे हैं। AAP की यह मुहिम उन पंजाबियों को खूब रास आ रही है, जो किसान नहीं हैं लेकिन आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। किसान आंदोलन का समर्थन और विधानसभा में कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने का प्रस्ताव पास करने के बाद किसानों के केस वापस लेकर कैप्टन यह दिखा रहे हैं कि किसान हित में उनके कदम ज्यादा जमीनी और असरदार हैं।
आंकड़ों में देखें पंजाब में किसानों की सियासी मजबूती
पंजाब में सीटों का क्षेत्र के हिसाब से ब्यौरा
पंजाब में कुल विधानसभा सीटें – 117
- अर्बन – 40
- सेमी अर्बन – 51
- रूरल – 26
(सेमी अर्बन और रूरल पर किसान असरदार हैं, कुल 77 से ज्यादा सीटों पर किसान वोट बैंक का डोमिनेंस)
पंजाब में विधानसभा सीटों की मौजूदा स्थिति
- कांग्रेस – 77
- आप – 20
- अकाली – 15
- भाजपा – 3
- लोक इंसाफ पार्टी – 2
वोट प्रतिशत के लिहाज से किस सीट पर कौन निर्णायक
- सिख – 44
- हिंदू – 40
- दलित (सिख व हिंदू) – 32
- मुसलमान – 1
पंजाब में क्षेत्रवार सीटों का ब्यौरा
- मालवा – 69
- माझा – 25
- दोआबा – 23
(मालवा में ज्यादातर रूरल सीटें हैं, जहां किसानों का दबदबा है। यही इलाका पंजाब की सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है। दोआबा में ज्यादातर दलित असर वाली सीटें हैं। माझा में सिख बाहुल्य सीटें है। पंजाब के शहरी इलाकों की सीटों पर हिंदू वोट बैंक मजबूत है।)
कृषि का अर्थशास्त्र
- कितनी मंडियां – 1850 (इनमें 152 बड़ी मंडियां हैं, जिन्हें ग्रेन मार्केट कहा जाता है।)
- मंडियों का टर्नओवर – सालाना 3500-3600 करोड़ (मार्केट फीस और रूरल डेवलपमेंट फंड के तौर पर सरकार को कमाई)
- फार्म इक्विपमेंट – सालाना करीब 3000 करोड़ रुपए।
- ट्रांसपोर्ट – सालाना 1000 करोड़ रुपए।
- फर्टीलाइजर – सालाना 15000 करोड़।
- आढ़तियों की कमाई – सालाना करीब 1500 करोड़।
पंजाब के किसानों के पास औसत जमीन और कमाई (यूपी बिहार जैसे राज्यों से तुलना करने पर)
पंजाब में खेतीबाड़ी की जमीन 7.442 मिलियन हेक्टेयर है। जिसका मालिकाना हक 10.93 लाख लोगों के पास है। इनमें 2.04 लाख (18.7%) छोटे और मार्जिनल किसान हैं। 1.83 लाख (16.7%) छोटे किसान हैं, जबकि 7.06 लाख (64.6%) किसान ऐसे हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है।
साल 2013 के कृषि सर्वेक्षण के मुताबिक देश के किसान की सालाना आय 77,124 रुपए है, जो 6,427 प्रतिमाह बनती है। सबसे ज्यादा आय पंजाब के किसानों की है। पंजाब में किसानों की प्रतिमाह कमाई का औसत 18059 रुपए है, जबकि बिहार में यह हर महीने सिर्फ 3557 रुपए है। पंजाब के किसान बिहार के किसान के मुकाबले 6 गुना कमाते हैं।
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